Wednesday, November 12, 2008

ग्लैमर ही नहीं गंभीरता भी

सौरभ राय

जर्नलिज्म एक ऐसा व्यवसाय है जो ग्लैमर यानी नेम एंड फेम से सराबोर है। इस क्षेत्र के चमकते सितारों की चकाचौंध युवाओं को अपने ओर आकर्षित कर रही है। जलवेदार पत्राकारिता का ख्वाब सींचकर न जाने कितने लोग इसके लिए अपने को 'फिट एंड फाइन ’ मानने लगते हैं। पर जब वे सपनों को हकीकत में बदलने के लिए धरातल पर आते हैं तो ग्लैमर के पीछे की मेहनत को देखकर उनके होश फाख्ता हो जाते हैं। उनके सारे ख्वाब जमीनी हकीकत से टकराकर बिखर जाते हैं।

इस पेशे में आने की हसरत पालने वालों को भ्रम में फंसने से बचना होगा। पत्राकारिता की कुछ बुनियादी जरूरतें हैं जिनका ज्ञान तो हर हाल में होना ही चाहिए। साहित्य में कल्पना के घोडे़ दौड़ाए जा सकते हैं पर पत्राकारिता में ‘फिगर और फैक्ट्स ’ का काफी महत्व होता है। पत्राकारिता के लिए सुंदर चेहरा होना अनिवार्य शर्त नहीं है बल्कि जर्नलिस्टिक अप्रोच जरूरी है। पत्राकारिता का मतलब सिर्फ टीवी पर दिखना और बाईलाइन पाकर चमकना नहीं है। इस क्षेत्र से जुड़े अधिकाँश लोग पर्दे के पीछे रहकर महत्वपूर्ण काम करते हैं। इलैक्टानिक मीडिया मे स्किप्ट राइटर, रन डाउन प्रोडयूसर, न्यूज एडीटर, आउटपुट एडीटर जैसे लोगों की भूमिका बेहद अहम होती है। डेस्क में काम करने वालों की भाषा सुधरती जाती है। डेस्क का अनुभव आगे चलकर रिपोर्टिंग में काम आता है। इस पेशे में काम करने के लिए कोई निश्चित टाइम-टेबल नहीं होता। एक पत्राकार को घटनाओं के हिसाब से हर वक्त तैयार रहना होता है। इस क्षेत्र में कदम रखने वाले शुरूआती दिनों में ही ऊँची पगार की उम्मीद करते हैं। पर ऐसा नहीं है। बडे़-बड़े पत्राकारों को अपने शुरूआती दिनों में काफ़ी कम पैसा पर काम करना पड़ा है।

इसके अलावा भाषा पर पकड़, नया सीखने की ललक, अपडेटेड सामान्य ज्ञान, कठोर मेहनत, अध्ययन, तथ्यों की परख, सतर्कता आदि वे गुण हैं, जिनके बगैर इस क्षेत्र में सफलता की कल्पना नहीं की जा सकती है। निष्पक्षता और ईमानदारी इस पेशे की अनिवार्य योग्यता हैं। एक पत्राकार को कई तरह के दबावों और प्रलोभनों के बीच काम करना होता है। पत्राकार समाज को एक दिशा देने का काम करता है। इसलिए कहा भी जाता है, ‘न्यूजपेपर्स आर स्कूल मास्टर्स ऑफ़ द कामन पीपुल’।
(लेखक दैनिक अखबार ‘हरिभूमि’ में कार्यरत हैं.)

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